Thursday, March 18, 2010

हिंदी ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित


इसी माह अयन प्रकाशन (1/20, महरौली, नई दिल्ली - 110030, दूरभाष 011- 2664 5812, ई-मेल : ayanprakashan@rediffmail.com ) ने मेरा एक हिंदी ग़ज़ल संग्रह "पानी पर लिखे से" (ISBN: 978-81-7408-395-1) प्रकाशित किया है।

आशा है कि पाठक वर्ग को संग्रह पसंद आएगा।

Saturday, March 6, 2010

एक ग़ज़ल फिर

मैं बस अपनी गज़लें यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ इन दिनों, कोई पढ़े शायद और बताए कि क्या केवल अपनी ग़ज़लें पोस्ट करना ठीक है या ... और शायद कोई यह भी बताए कि ये गज़लें ठीक हैं या ...

शायद अच्छा शब्द है । बड़ा सुकून देता है सोचना कि जो नहीं हो रहा है और इप्सित है वह शायद कभी हो ।

खैर, ग़ज़ल हाज़िर है:

हो उठा है बहुत अंधकार शहर में
अपेक्षा हुई है अब अधिकार शहर में

तुम भावना आराधना की बात करो यहाँ
सत्य तो है अब मात्र व्यापार शहर में

हर सरिता को बाँधते हैं तटबंध में वे
असीमित एषणा हो रही साकार शहर में

मैत्री, स्नेह, अनुराग की ऋतु नहीं अब
लालित्य का है अंतिम संस्कार शहर में

सुजीत किधर देखोगे कि धुआँ न मिले
अग्नि का अब नहीं पारावार शहर में
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Friday, March 5, 2010

अग्नि अग्नि में भी बड़ा विचित्र अंतर होता है

4-5 दिनों से अपने चिट्ठे पर आया ही नहीं। क्षमा चाहता हूँ।
कभी यह ग़ज़ल लिखी थी। आप पढेंगे?

ऐसा ही तो इस धरा पर अक्सर होता है
हर हृदय की तरफ तना एक नश्तर होता है

जिधर कहीं किसी कुँज में बैठे हों दो जन
आ रहा कहीं से उधर ही कोई पत्थर होता है

सजे कागजों पर सधी लिखाई एक भरम है मात्र
जहर बुझा इन पत्रों का तो हर अक्षर होता है

प्रश्न वही मथा-निचोड़ा हृदयों को करते हैं मित्र
निश्चित नहीं जिनका कोई भी उत्तर होता है

यूँ भीष्म भी बहुत तो पाए नहीं जाते किन्तु
चुभते शरों का ही सदा उनका अंतिम बिस्तर होता है

वह आरती सी जलती है तुम चिता सा सुलगते हो
अग्नि अग्नि में भी बड़ा विचित्र अंतर होता है

अपराध तो सुजीत हो ही जाया करते हैं
प्रायश्चित कि दंड का कहाँ सदा अवसर होता
है
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