Sunday, October 17, 2010

विकास

अपने हरियाले अतीत का
एकमात्र गवाह,
विगत का स्मृतिचिह्न
बूढ़ा पीपल यह,
बड़ा जिद्दी, बड़े जीवट वाला है,
कि खड़ा है जबर्दस्ती
बीचोबीच सालों साल से,

चौतरफा खड़ी चिमनियाँ
वार करती हैं दिन-रात
और यह मरता ही नहीं.

यह तो और हुमक उठता है हर बरसात में.

और कारखाने की चारदीवारी
फैलती जाती है हर साल,
इसी पेड़ के वितान की तरह,

सिमटती जाती हैं
आश्रयस्थलियाँ
मक्कों की बालियों की.
दूब भाग रही थोड़ी जगह खोजने
लॉनों की तरफ,
नदियाँ
जल ले आती हैं
और मल ले जाती हैं,
पहाड़ छीजते हैं चिंता में
कि कम न पड़े गिट्टियों की सप्लाई.

और यह पीपल,
जिए जाता है
अतीत से दग्द्ध पर भविष्य से निश्चिंत.

किंतु हुआ है उदास पहली बार आज,
कि
घोंसले में चिड़ा कह रहा था चिड़ी को
“चलें कहीं और,
यहाँ विकास बहुत हो गया है.”
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