एक मुद्दत हो गयी जबान को सुन्न पड़े हुए. आज कुछ कहा है -- पढ़ देखिए:
हर इक वार पर मुस्कराता हूँ
किए ख़ार अता हमें गुल ने
दरकुशाई तो अख्तियार उसका
दिक न होवे वो बपहलुए रक़ीब
सजा सख्त है बेगुनाही की यहाँ
ये तीरगी शदीद तर कि तूफ़ाँ ये
नालः चीज अक्सीर है सुजीत बड़ी
यूँ मैं जालिम को जलाता हूँ |
किए ख़ार अता हमें गुल ने
मम्नून हूँ, सर पे सजाता हूँ |
दरकुशाई तो अख्तियार उसका
मैं फ़कत फर्जे-आशिकी निभाता हूँ |
दिक न होवे वो बपहलुए रक़ीब
मैं दूर से सलाम बजा लाता हूँ |
सजा सख्त है बेगुनाही की यहाँ
इज्जे-मुंसिफ़ में चुप रह जाता हूँ |
ये तीरगी शदीद तर कि तूफ़ाँ ये
नालः चीज अक्सीर है सुजीत बड़ी
अश्के-रुख मैं इसी से सुखाता हूँ |
**********