Friday, December 31, 2010
नव वर्ष की शुभकामनाएँ
नव वर्ष सभी मित्रों को समस्त अभीष्ट प्राप्ति की सामर्थ्य तथा शुभ-मात्र की एषणा के विवेक से परिपूर्ण रखे.
Thursday, December 30, 2010
एक मुद्दत से आँख रोई नहीं -- परवीन शाकिर की गज़ल
नींद तो ख्वाब हो गई शायद
जिन्से-नायाब हो गई शायद
अपने घर की तरह वो लड़की भी
नज्रे- सैलाब हो गई शायद
तुझ को सोचूँ तो रोशनी देखूँ ,
याद, महताब हो गई शायद
एक मुद्दत से आँख रोई नहीं,
झील पायाब हो गई शायद
हिज्र के पानियों में इश्क की नाव,
कहीं गर्क़ाब हो गई शायद
चंद लोगों की दस्तरस में है
ज़ीस्त किमख़्वाब हो गई शायद
**********
जिन्से-नायाब हो गई शायद
अपने घर की तरह वो लड़की भी
नज्रे- सैलाब हो गई शायद
तुझ को सोचूँ तो रोशनी देखूँ ,
याद, महताब हो गई शायद
एक मुद्दत से आँख रोई नहीं,
झील पायाब हो गई शायद
हिज्र के पानियों में इश्क की नाव,
कहीं गर्क़ाब हो गई शायद
चंद लोगों की दस्तरस में है
ज़ीस्त किमख़्वाब हो गई शायद
**********
Sunday, December 19, 2010
तीन सतरें
(एक)
सरदर्दी हर गाम हुई
बरजोरी सरे-शाम हुई
बेखौफ़ रहे ताकतों वाले
और मुन्नी बदनाम हुई।
(दो)
आ गई चीजें इतनी लगाने की
कि नींद हराम हुई जमाने की
सौदागर सपनों का बाजार बना
पर शीला किसी के हाथ न आने की।
(तीन)
उसके होंठ तले जो छोटा तिल है
बंदे का मुआ वही तो कातिल है
वह सुनारों संग घूमती रही और
ये गाएँ, फूल नहीं मेरा दिल है।
*************
सरदर्दी हर गाम हुई
बरजोरी सरे-शाम हुई
बेखौफ़ रहे ताकतों वाले
और मुन्नी बदनाम हुई।
(दो)
आ गई चीजें इतनी लगाने की
कि नींद हराम हुई जमाने की
सौदागर सपनों का बाजार बना
पर शीला किसी के हाथ न आने की।
(तीन)
उसके होंठ तले जो छोटा तिल है
बंदे का मुआ वही तो कातिल है
वह सुनारों संग घूमती रही और
ये गाएँ, फूल नहीं मेरा दिल है।
*************
Subscribe to:
Posts (Atom)