फूल ने तितली से कुछ कहा न था
दरम्याँ अब बचा कोई मुद्दआ न था
झुका तो था वो हस्बे-मामूल ही
दह्न-ए-गुंचा आज नीम – वा न था
रंग ही रंग जमीं, गुलाल उफ़क में
होलियाना मगर इस शाम फ़ज़ा न था
यूँ गर्के-अब्र हो जाएगा बादे-कुर्बत
दह्र को मह पे इसका गुमाँ न था
उस आतशे खुशूशी की हयादारी वल्लाह
तपिश रूह-कुशाँ, मगर कोई धुआँ न था
रंग लिए परचम अपने जब हजारों ने
कहा बिस्मिल ने, लहू मिरा रायगाँ न था
वक्त मुंसिफ़ को बताएगा इक दिन जरूर
मायूस-ओ-नाचार था, सुजीत बदगुमां न था
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दरम्याँ अब बचा कोई मुद्दआ न था
झुका तो था वो हस्बे-मामूल ही
दह्न-ए-गुंचा आज नीम – वा न था
रंग ही रंग जमीं, गुलाल उफ़क में
होलियाना मगर इस शाम फ़ज़ा न था
यूँ गर्के-अब्र हो जाएगा बादे-कुर्बत
दह्र को मह पे इसका गुमाँ न था
उस आतशे खुशूशी की हयादारी वल्लाह
तपिश रूह-कुशाँ, मगर कोई धुआँ न था
रंग लिए परचम अपने जब हजारों ने
कहा बिस्मिल ने, लहू मिरा रायगाँ न था
वक्त मुंसिफ़ को बताएगा इक दिन जरूर
मायूस-ओ-नाचार था, सुजीत बदगुमां न था
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