Sunday, March 20, 2011

लहू मिरा रायगाँ न था

फूल ने तितली से कुछ कहा न था
दरम्याँ अब बचा कोई मुद्दआ न था

झुका तो था वो हस्बे-मामूल ही
दह्‌न-ए-गुंचा आज नीम – वा न था

रंग ही रंग जमीं, गुलाल उफ़क में
होलियाना मगर इस शाम फ़ज़ा न था

यूँ गर्के-अब्र हो जाएगा बादे-कुर्बत
दह्र को मह पे इसका गुमाँ न था

उस आतशे खुशूशी की हयादारी वल्लाह
तपिश रूह-कुशाँ, मगर कोई धुआँ न था

रंग लिए परचम अपने जब हजारों ने
कहा बिस्मिल ने, लहू मिरा रायगाँ न था

वक्त मुंसिफ़ को बताएगा इक दिन जरूर
मायूस-‌ओ-नाचार था, सुजीत बदगुमां न था
                    *********** 

No comments:

Post a Comment

टिप्पणियाँ उत्साह बढ़ाती हैं । कृपया मेरी कृतज्ञता एवं धन्यवाद स्वीकार करें।