नेट पत्रिका लघुकथा.कॉम ने भी जून 2011 के कथादेश में प्रकाशित मेरी एक लघुकथा को अपने जून अंक में प्रकाशित किया है. आप इसे यहाँ पढ़ सकते हैं.
Monday, June 20, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
दुनिया छोटी हो गयी है और आदमी ज्यादा मशरूफ. अब मिलने-जुलने हमबयानी हमसुखनियत के मौके कहाँ और कहाँ वह नज़र-ब-नज़र गुफ्तगू की ऐश. आइए कि कभी कभी यूं भी मिलें. आइये कि दोस्त बनें. कुछ मैं सुनूं, कुछ आप कहें.
No comments:
Post a Comment
टिप्पणियाँ उत्साह बढ़ाती हैं । कृपया मेरी कृतज्ञता एवं धन्यवाद स्वीकार करें।