सभी मित्रों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
रंग-पर्व हमारे और हमारे प्रियजनों के जीवन में प्रेम, करुणा, सुख, शान्ति, समृद्धि, सफलता, उत्कर्ष के सप्त वर्ण इन्द्रधनुष का उन्मेष करे और हमें अन्यों के जीवन में रंग भर सकने की क्षमता, इच्छा, तथा अभिप्रेरणा दे.
Sunday, February 28, 2010
होली की हार्दिक शुभकामनाएं
Friday, February 26, 2010
एक ग़ज़ल, शायद पसंद आए
मेरी ही एक ग़ज़ल और पढ़िए।
किसी को मेरा किस्सा तुम अगर कहना
रहे ध्यान कि मत हँस कर कहना
फेंकती दृष्टि संसार की जिसे सर पर मेरे
प्राणाधार मेरे, उसे ही तुम पत्थर कहना
प्रिय जिसको दृष्टि से अपनी गिरा फेंके
अयि भाषा-प्राण, तू उसे ही बेघर कहना
शोणित सिक्त शूलों से जो दिखे बना सा
हर उस पगडंडिका को तू मेरी डगर कहना
सूखेगा न कभी सुजीत की आँख का खारा पानी
है तेरी दृक्नीलिमा भरी, इसे तू समंदर कहना
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Wednesday, February 24, 2010
एक हिंदी ग़ज़ल
यह प्रकरण नहीं है किसी अभिव्यक्ति का
विरह नहीं है मूल्य संगत अनुरक्ति का
हर पुष्प हो स्वीकार्य ही आराध्य को क्यों
होता है कहाँ बंधनकारी नियम भक्ति का
प्रतिदान न सही, उपेक्षा भी तो न करे प्रिय
यह आग्रह तो है सदा किन्तु हर व्यक्ति का
इस द्विधा का एक समाधान मिले कहाँ
अपेक्षा संग त्याग चले, पथ यह आसक्ति का
बंधन अमित हैं सुजीत आराधना के आभरण पर
कौन करे क्या उपाय इसकी मुक्ति का
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Monday, February 22, 2010
दवाओं के लेबल पर यह आई यू क्या होता है
वजन घटाने के लिए टहलना -- हृदय-गति का लक्ष्य प्राप्त करना आवश्यक
किसी व्यक्ति के लिए वांछित हृदय-गति उसके लिंग और अवस्था पर निर्भर होती है जिसकी गणना करने केलिए कुछ सूत्र हैं। उन सूत्रों की जानकारी में यदि आपकी रूचि हो तो अंगरेजी में लिखा मेरा एक छोटा सा आलेख यहाँ उपलब्ध है। इसे scribd.com पर पढ़ने के लिए यहाँ राईट क्लिक कर नई विंडो में खोल सकते हैं।
Saturday, February 20, 2010
एक ग़ज़ल मेरी भी पढ़िए
एक अपनी ग़ज़ल आपकी नज़र कर रहा हूँ। अच्छी लगे तो बताकर कृपया हौसला अफजाई करें, और अगर इसे बेहतर बनाने के ख़याल से कुछ तरतीम करने की जहमत उठाएं और भी कृतज्ञ होऊँगा :
हमसफ़र उसका कौन कभी भी रह पाता है
दस दस कदम पर जो रस्ता बदल जाता है।
खारे - गुल, दागे - माहताब, ताबे-खुर्शीद
खुश हो कैसे, यही जिसको नजर आता है।
लुकमान क्या छुडाए उसका आधाशीशी
हर अफकार को जो अहबाब से छुपाता है ।
फूल तो झड न पाएँगे उसकी छाती पर
जो दरिया सदा कनारों में आग लगाता है।
अलिफ़ से हे तक सीधे पढने वालो
बीच से बांचना भी बवक्त काम आता है।
शदीद अकीदत से जो बाम पे धरा जाए
वो दिया तूफानों को राह दिखाता है।
अल्लाह ही हाफिज उसके मुस्तकबिल का
सम्रे इमरोज जो किर्मे दीरोज को खिलाता है।
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सुना है -- अहमद फ़राज़ की रचना
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं .
सुना है रब्त है उस को ख़राब हालों से
सो अपने आप को बर्बाद करके देखते हैं .
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ुक उस की
सो हम भी उस की गली से गुज़र कर देखते हैं .
सुना है उस को भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़
सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं .
सुना है बोले तो बातों से फूल झरते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं .
सुना है रात उसे चाँद ताकता रहता है
सितारे बाम-ए-फलक से उतर के देखते हैं .
सुना है हश्र हैं उस की गजाल सी आंखें
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं .
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं .
सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उस की
सुना है शाम को साये गुज़र के देखते हैं .
सुना है उस की सियाह चश्मगी क़यामत है
सो उस को सुर्माफरोश आह भर के देखते हैं .
सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पर इल्जाम धर के देखते हैं .
सुना है आइना तमसाल है जबीं उस का
जो सादा दिल हैं बन संवर के देखते हैं .
सुना है जब से हमाइल हैं उस की गर्दन में
मिजाज और ही लाल-ओ-गौहर के देखते हैं .
सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इमकान में
मलंग जलवे उस की कमर के देखते हैं .
सुना है उस के बदन के तराश ऐसे हैं
कि फूल अपनी क़बायें क़तर के देखते हैं .
वो सर्व-क़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं
कि उस शजर पे शगूफे समर के देखते हैं .
बस एक निगाह से लूटता है काफिला दिल का
सो रह-रवान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं .
सुना है उस के शबिस्तान से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीं उधर के भी जलवे इधर के देखते हैं .
रुके तो गर्दिशें उस का तवाफ़ करती हैं
चले तो उस को ज़माने ठहर के देखते हैं .
किसे नसीब के बे-पैराहन उसे देखे
कभी कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं .
कहानियां हीं सही सब मुबालगे ही सही
अगर वो ख्वाब है ताबीर कर के देखते हैं .
अब उस के शहर में ठहरें कि कूच कर जायें
'फ़राज़' आओ सितारे सफ़र के देखते हैं .
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Friday, February 19, 2010
शकेब जलाली की दो ग़ज़लें
शकेब जलाली के बारे में बाजे वाली गली पर कुछ पढ़ा था।
1 अक्टूबर 1934 को कस्बा जलाली (अलीगढ़) में जन्मे सैयद हसन रिज़वी बंटवारे का शिकार होकर पाकिस्तान चले गए. 12 नवम्बर 1966 को रेल पटरी पर जाकर जान देने तक ज़माने की दुश्वारियों से दो-चार होते रहे. शकेब जलाली के नाम से ग़ज़लें कहीं.
फ़कत 32 साल जीकर जैसा शकेब कह गए, कई शायरों की बरसों की कोशिश भी उन्हें उस बुलन्दी तक पहुँचाने में शायद कामयाब नहीं हो पाए.
उनकी कुछ ग़ज़लें बाजे वाली गली पर हैं, कुछ कविताकोश पर भी हैं. दो यहाँ देखें.
1.
मुरझा के काली झील में गिरते हुए भी देख
सूरज हूँ, मेरा रंग मगर दिन ढले भी देख.
कागज़ की कतरनों को भी कहते हैं लोग फूल
रंगों का एतबार है क्या, सूंघ के भी देख.
हर चन्द राख हो के बिखरना है राह में
जलते हुए परों से उड़ा हूँ मुझे भी देख.
तूने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूं
आंखों को अब न ढांप, मुझे डूबता भी देख
इन्सान नाचता है यहाँ पुतलियों के रंग
दुनिया में आ गया है तो इसके मज़े भी देख
2.
आके पत्थर तो मेरे सहन में दो-चार गिरे
जितने उस पेड़ के फल थे, पसे-दीवार गिरे
ऐसी दहशत थी फ़िज़ाओं में खुले पानी की
आँख झपकी भी नहीं, हाथ से पतवार गिरे.
मुझको गिरना है तो मैं अपने ही क़दमों में गिरुं
जिस तरह साय-ए-दीवार पे दीवार गिरे
तीरगी छोड़ गई दिन में उजाले के खुतूत
ये सितारे मेरे घर टूट के बेकार गिरे.
देख कर अपने दरो-बाम लरज़ उठता हूँ
मेरे हमसाये में जब भी कोई दीवार गिरे
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Wednesday, February 17, 2010
परवीन शाकिर की एक और ग़ज़ल
उस ने ख़ुश्बू की तरह मेरी पज़ीराई की
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
वो कहीं भी गया लौटा तो मेरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मेरे हरजाई की
तेरा पहलू तेरे दिल की तरह आबाद रहे
तुझ पे गुज़रे न क़यामत शब-ए-तन्हाई की
उस ने जलती हुई पेशानी पे जो हाथ रखा
रूह तलक आ गई तासीर मसीहाई की
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“नींद जब ख़्वाबों से प्यारी हो” -- परवीन शाकिर
मेरा सर हाज़िर है लेकिन मेरा मुंसिफ देख ले
मेरी चादर तो छीनी थी शाम की तनहा'ई ने
नींद जब ख़्वाबों से प्यारी हो तो ऐसे अह'द में
रेत अभी पिछले मकानों की ना वापस आ'ई थी
सारे रिश्ते हिज्रतों में साथ देते हैं तो फिर
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
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Monday, February 15, 2010
कृषि आधारित उद्योगों का विकास
Sunday, February 14, 2010
पहली पोस्ट
शायद आप को कृत्या के पिछले अंक में प्रकाशित शशि भूषण की कविता पाखी की याद में चंद सतरें पसंद आये.
यहाँ आप इसी अंक में प्रकाशित मेरी कुछ छोटी कविताएँ भी पढ़ सकते हैं।