Wednesday, February 17, 2010

“नींद जब ख़्वाबों से प्यारी हो” -- परवीन शाकिर

परवीन शाकिर मेरे प्रिय शायरों में से एक हैं। उनका जन्म 24 नवम्बर 1952 को हुआ और निधन 26 दिसम्बर १९९४ को। मात्र ४२ वर्ष के जीवन में उन्होंने जो जो लिखा उसे किसी भी शायर के कलम से कम आंकना कमतरी होगी। उनकी कुछ गज़लें पोस्ट करूंगा। अभी एक मुलाहिजा फरमाएँ। देखिये - "नींद जब ख़्वाबों से प्यारी हो तो ऐसे अह'द में ख़्वाब देखे कौन और ख़्वाबों को दे ताबीर कौन" - और सोचिये यह २०१० में पुरानी हुई क्या.

पा-बा-गिल सब हें रिहा'ई की करे तदबीर कौन
दस्त -बस्ता शह'र में खोले मेरी ज़ंजीर कौन
मेरा सर हाज़िर है लेकिन मेरा मुंसिफ देख ले
कर रहा है मेरे फर्द-ए-जुर्म को तहरीर कौन
मेरी चादर तो छीनी थी शाम की तनहा'ई ने
बे- रिदा'ई को मेरी फिर दे गया तश-हीर कौन
नींद जब ख़्वाबों से प्यारी हो तो ऐसे अह'द में
ख़्वाब देखे कौन और ख़्वाबों को दे ताबीर कौन
रेत अभी पिछले मकानों की ना वापस आ'ई थी
फिर लब-ए-साहिल घरोंदा कर गया तामीर कौन
सारे रिश्ते हिज्रतों में साथ देते हैं तो फिर
शहर से जाते हु'ए होता है दामन-गीर कौन
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
देखना है खींचता है मुझपे पेहला तीर कौन
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