Wednesday, February 17, 2010

परवीन शाकिर की एक और ग़ज़ल

इसे भी देखिये:
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उस ने ख़ुश्बू की तरह मेरी पज़ीराई की
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
वो कहीं भी गया लौटा तो मेरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मेरे हरजाई की
तेरा पहलू तेरे दिल की तरह आबाद रहे
तुझ पे गुज़रे न क़यामत शब-ए-तन्हाई की
उस ने जलती हुई पेशानी पे जो हाथ रखा
रूह तलक आ गई तासीर मसीहाई की
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4 comments:

kshama said...

वो कहीं भी गया लौटा तो मेरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मेरे हरजाई की
Khoobsoorat alfaaz!

dr amit jain said...

बहुत बढिया

Yogesh Verma Swapn said...

कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की

behatareen rachna. blog jagat men swagat hai.

संगीता पुरी said...

हिंदी चिट्ठा जगत में आपको देखकर खुशी हुई .. सफलता के लिए बहुत शुभकामनाएं !!

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