Monday, August 29, 2011

सजा सख्त है बेगुनाही की यहाँ

एक मुद्दत हो गयी जबान को सुन्न पड़े हुए. आज कुछ कहा है -- पढ़ देखिए:

हर इक वार पर मुस्कराता हूँ
यूँ मैं जालिम को जलाता हूँ |

किए ख़ार अता हमें गुल ने
मम्नून हूँ, सर पे सजाता हूँ |

दरकुशाई तो अख्तियार उसका
मैं फ़कत फर्जे-आशिकी निभाता हूँ |

दिक न होवे वो बपहलुए रक़ीब
मैं दूर से सलाम बजा लाता हूँ |

सजा सख्त है बेगुनाही की यहाँ
इज्जे-मुंसिफ़ में चुप रह जाता हूँ |

ये तीरगी शदीद तर कि तूफ़ाँ ये
शम्मए दिल बारहा क्यूँ जलाता हूँ |

नालः चीज अक्सीर है सुजीत बड़ी
अश्के-रुख मैं इसी से सुखाता हूँ |
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1 comment:

Poonam Jha said...

Nice. I liked it very much.

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