मेरे ही लहू पर गुजर औकात करो हो
मुझ से ही अमीरों की तरह बात करो हो
दिन एक सितम एक सितम रात करो हो
कि दोस्त हो, दुश्मन को भी तुम मात करो हो
हम खाक-नशीं, तुम सितम आरा ए सरे- बाम
पास आके मिलो, दूर से क्या बात करो हो
हमको जो मिला है वो तुम्हीं से तो मिला है
हम, और भुला दें तुम्हें, क्या बात करो हो
यूँ तो मुझे मुँह फेर के देखो भी नहीं हो
जब वक्त पड़े है तो मदारात करो हो
दामन पे कोई छींट, न खंजर पे कोई दाग
तुम कत्ल करो हो कि करामात करो हो
बकने भी दो आजिज़ को जो बोले है बके है
दीवाना है, दीवाने से क्या बात करो हो
Sunday, May 23, 2010
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1 comment:
ये पंक्तियाँ, इस नाचीज़ की ओर से, सिर्फ आपके लिए:
आये दिन अपने कलम से, ऐसा घात करो हो
ऐसे लेखक हो तुम, खिलाड़ियों को मात करो हो
जग जाए सोच, हिल जाए दिल, ऐसे बात करो हो
वो प्रशंसक हो, नाचीजों की तारीफ भी दिन रात करो हो...
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