Wednesday, February 24, 2010

एक हिंदी ग़ज़ल

मेरी एक ग़ज़ल प्रस्तुत है।

यह प्रकरण नहीं है किसी अभिव्यक्ति का
विरह नहीं है मूल्य संगत अनुरक्ति का

हर पुष्प हो स्वीकार्य ही आराध्य को क्यों
होता है कहाँ बंधनकारी नियम भक्ति का

प्रतिदान न सही, उपेक्षा भी तो न करे प्रिय
यह आग्रह तो है सदा किन्तु हर व्यक्ति का

इस द्विधा का एक समाधान मिले कहाँ
अपेक्षा संग त्याग चले, पथ यह आसक्ति का

बंधन अमित हैं सुजीत आराधना के आभरण पर
कौन करे क्या उपाय इसकी मुक्ति का
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4 comments:

वीनस केसरी said...

बहुत खूब

Yogesh Verma Swapn said...

hindi men kya khoob likha hai. wah.

KSS Kanhaiya (के एस एस कन्हैया) said...

प्रिय केशरी जी और योगेश जी, आपकी सराहना के लिए धन्यवाद. स्नेह बनाए रखें, यह अनुरोध भी.

Rajesh Kummar Sinha said...

Agar Ghazal kahne aur likhne wala achha ho to Ghazal bhi achhi ban hi jati hai
R K Sinha

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